शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मुस्कान





""करता हूँ तन मन से बंदन 
            मैं जन मन की अभिलाषा का
                         अभिनन्दन अपनी संस्कृति का
                                          आराधना अपनी भाषा  का.""



"खोया जिसने अपनापन सब कुछ उसने खो .. दिया,
सच्चा दोस्त वही है बन्धु संग हँसा संग रो .. दिया।

आ जाये यदि कोई बिपदा आगे ..बढ़ -क़र  उसे झेले,
स्नेह सागर में नहला दे काटे जीवन के झण अकेले।

मन मन्दिर में किया उजाला मैल मन के धो ..दिया,
सच्चा दोस्त वही है बन्धु संग हँसा संग रो .....दिया।"




फूलों से झरा जो  पराग तेरी माथे की बिंदिया ..... ..बनी,
हँसा जो गुलाब चमन में तेरे गुलाबी गाल के लाली बनी।

तेरे सुर्ख अधरों ली जब कम्पन .. कमल ताल में खिल  गये,
जब ली तुमने अंगड़ाई चौकं मेघो ने नीर का साथ भूल गये।

तेरा सजना सवरना देख क़र फूलों में मुस्कान बिखर  गयी,
बागो में कोयल कुंके भवरों  का गुंजन कमल  को भा गयी।

ठंडी ठंडी हवा में न लहरा चुनरियाँ हवा भी सरमा जाएगी,
तेरे  रोम रोम से उद्भित  हँसी से दुनियां माधुरी हो जाएगी।











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5 टिप्‍पणियां:

  1. फूलो से पराग झरा,बहुत ही सुन्दर गजल,आगे भी इंतजार रहेगा।

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  2. बहुत ही सुंदर अभिब्यक्ति, दोस्त जो समय पर काम आये वही सच्चा दोस्त है।

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  3. झरा जो पराग तेरी बिंदिया बनी
    हँसा जो गुलाब तेरे गाल खिल गए
    छुआ होगा तेरे अधर ने जरूर
    ताल के कमल सुर्ख लाल हो गए

    जवाब देंहटाएं

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