बुधवार, 20 मार्च 2013

"घर के दरमियाँ"






कितनी दीवारें उठी हैं एक घर के दरमियाँ
घर कहीं गुम हो गया दीवारो-दर के दरमियाँ.

कौन अब इस शहर में किसकी ख़बरगीरी करे
हर कोई गुम इक हुजूमे-बेख़बर के दरमियाँ.

जगमगाएगा मेरी पहचान बनकर मुद्दतों
एक लम्हा अनगिनत शामो-सहर के दरमियाँ.

एक साअत थी कि सदियों तक सफ़र करती रही
कुछ ज़माने थे कि गुज़रे लम्हे भर के दरमियाँ.

वार वो करते रहेंगे, ज़ख़्म हम खाते रहें
है यही रिश्ता पुराना संगो-सर के दरमियाँ.

किसकी आहट पर अंधेरों के क़दम बढ़ते गए
रहनुमा था कौन इस अंधे सफ़र के दरमियाँ.

बस्तियाँ 'मखमूर' यूँ उजड़ी कि सहरा हो गईं
फ़ासले बढ़ने लगे जब घर से घर के दरमियाँ
.
 
 
 "कहीं पे गम तो कहीं पर खुशी अधूरी है मुझे मिली है जो दुनिया बडी अधूरी है"-शायर मखमूर सईदी जी भावभीनी श्रधान्जली के साथ उनकी रचना.

Place Your Ad Code Here

49 टिप्‍पणियां:

  1. इतनी बेहतरीन गजल प्रस्तुत करने के लिए आपका आभार! आपका प्रयास सराहनीय व प्रशंसनीय है। मखमूर सईदी साहब को मेरे भी श्रद्धा सुमन अर्पित!
    सादर!

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया है आदरणीय-
    शुभकामनायें -

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत प्रभावशाली रचना प्रस्तुत की है आपने, राजेन्द्र जी. धन्यवाद, बधाई.

    जवाब देंहटाएं

  4. बस्तियाँ 'मखमूर' यूँ उजड़ी कि सहरा हो गईं
    फ़ासले बढ़ने लगे जब घर से घर के दरमियाँ.

    बस्तियाँ 'मखमूर' यूँ उजड़ी कि सहरा हो गईं
    फ़ासले बढ़ने लगे जब घर से घर के दरमियाँ. शुक्रिया राजेन्द्र जी को .शुक्रिया आपकी कीमती टिप्पणियों के लिए .भावांजलि शायर मखमूर साहब को .

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. शायर को श्रद्धा सुमन समर्पित करने का अच्छा मौका दिया आपने इस खूबसूरत गजल के माध्यम से... आभार.

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार है आपका.

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर रचना ...आभार पढवाने का !

    जवाब देंहटाएं
  9. सुभानाल्लाह ! बहुत खूब !!
    बे-मिसाल ग़ज़ल पढ़वाने के लिए शुक्रिया !!

    जवाब देंहटाएं
  10. जगमगाएगा मेरी पहचान बनकर मुद्दतों
    एक लम्हा अनगिनत शामो-सहर के दरमियाँ.

    मख्मूर साहब का आत्मकथ्य बिल्कुल सच प्रतीत होता है

    जवाब देंहटाएं
  11. बस्तियाँ 'मखमूर' यूँ उजड़ी कि सहरा हो गईं
    फ़ासले बढ़ने लगे जब घर से घर के दरमियाँ.....बहुत उम्दा

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इतनी प्रभावी ग़ज़ल है की बार बार पढ़ने का दिल करता है.

      हटाएं
  13. बहुत ही बेहतरीन एवं उम्दा ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत उम्दा ग़ज़ल. साझा करने के लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  15. वार वो करते रहेंगे, ज़ख़्म हम खाते रहें
    है यही रिश्ता पुराना संगो-सर के दरमियाँ...

    उम्दा शेर है ... जीवन की सचाइयां बयाँ करता हुआ ...
    लाजवाब गज़ल ..

    जवाब देंहटाएं
  16. राजेंद्रकुमार जी मखमूर सईदी जी की उत्कृष्ट गजल पहुंचाने के लिए धन्यवाद।
    आज कल शहरीकरण बढ रहा है और बंद दरवाजों तथा दीवारों के पीछे मानवीयता गूम हो गई है। चंद शद्बों में शायर ने भावों को पिरोया है।

    जवाब देंहटाएं
  17. किसकी आहट पर अंधेरों के क़दम बढ़ते गए
    रहनुमा था कौन इस अंधे सफ़र के दरमियाँ.

    बहुत खूब! बेहतरीन ग़ज़ल...

    जवाब देंहटाएं
  18. यही तो इब्तदा और इन्तहां है

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत किया है आपने. शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं
  20. इसी गज़ल के ये दो शेर ओर ....

    क्या कहें हर देखने वाले को आख़िर चुप लगी
    गुम था मंजर इख्तिलाफाते-नज़र के दरमियाँ.

    कुछ अँधेरा सा, उजालों से गले मिलता हुआ
    हमने एक मंज़र बनाया खैरो-शर के दरमियाँ.

    हर एक को इस शायर से महोब्बत हो जाती है, जब कोई शेर इनके पढता हैं

    सब से झुककर मिलना अपनी आदत है
    कद अपना हम सब के बराबर रखते हैं.

    सहरा-सहरा सरगरदां है ऐ 'मख्मूर'
    हम भी बगुलों जैसा मुक़द्दर रखते हैं।

    जवाब देंहटाएं

आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!